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जिला स्तरीय आदिवासी वार्षिक सम्मेलन-2025

  • लेखक की तस्वीर: S S Mahali
    S S Mahali
  • 29 अप्रैल
  • 8 मिनट पठन

अपडेट करने की तारीख: 30 अप्रैल


जिला स्तरीय आदिवासी वार्षिक सम्मेलन-2025 का आयोजन 27 एवं 28 अप्रैल 2025 को रायरंगपुर स्थित कल्याणी मंडप में भव्य रूप से किया गया। इस दो दिवसीय सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य आदिवासी समाज में सामाजिक, सांस्कृतिक एवं संवैधानिक जागरूकता का प्रसार करना, आदिवासी नेतृत्व विकास को प्रोत्साहित करना तथा सामाजिक एकता को सशक्त बनाना है।

💡प्रथम दिवस (27 अप्रैल 2025, रविवार)


प्रारंभिक कार्यक्रम:

सुबह 8:00 बजे से 8:30 बजे तक सभी प्रतिभागी कल्याणी मंडप में एकत्रित हुए। इसके उपरांत 8:30 बजे बोंगा बुरू पूजा कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया, जो हमारी परंपरागत आस्था का प्रतीक है। मंच का संचालन कर रहे बरियड हेंब्रम जी ने सभी को जोहार कर कार्यक्रम को आरंभ कुछ इस प्रकार से किया,,,

"जोहार साथियों! आज हम सब यहाँ आदिवासी सामाजिक एवं संवैधानिक जागरूकता सम्मेलन-2025 के ऐतिहासिक अवसर पर एकत्र हुए हैं। यह कार्यक्रम हमारी आदिवासियत की रक्षा और हमारे संवैधानिक अधिकारों को लागू करने के संकल्प का प्रतीक है। आईए, कार्यकरम का शुभारंभ करते हैं 'बोंगा-बुरु' किया गया।" (बॉंगा-बुरु पूजा के बाद)


परिचय सत्र:

9:00 बजे से 9:30 बजे तक सभी प्रतिभागियों का औपचारिक परिचय और स्वागत किया गया।

प्रमुख विषयवस्तु:

° आदिवासी समाज का संवैधानिक संरक्षण

° भूमि, जल, जंगल के अधिकार और वर्तमान खतरे

° पारंपरिक स्वशासन प्रणाली का सुदृढ़ीकरण

° आदिवासी सांस्कृतिक पुनर्जागरण

° सामूहिक आर्थिक विकास के मॉडल

° आदिवासी युवाओं के लिए शिक्षा और नेतृत्व निर्माण

° संविधान के अनुच्छेद 244, 342, 371, 5वीं अनुसूची और 6वीं अनुसूची का परिचय

° पंचायत (अनुसूचित क्षेत्र तक विस्तार) अधिनियम, 1996 (PESA Act) का महत्व

° वनाधिकार अधिनियम (Forest Rights Act, 2006) की भूमिका


सांस्कृतिक विचार-विमर्श:

9:30 बजे से 11:30 बजे तक चयनित विद्यार्थियों और ग्रामीण प्रतिनिधियों द्वारा आदिवासी संस्कृति, रीति-रिवाज, धर्म, एवं सामाजिक अनुभवों पर विचार-विमर्श किया गया।


प्रमुख सत्र:

11:30 बजे से 1:30 बजे तक सुकुमार सोरेन जी के नेतृत्व में आदिवासी पारंपरिक सामाजिक संरचना एवं प्रणाली पर गहन चर्चा की गई। सुकुमार सोरेन द्वारा सभा को "आदिवासी सामाजिक ढांचा और नेतृत्व निर्माण" पर संबोधित किया गया का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैं:

जोहार साथियों,

आज इस ऐतिहासिक सम्मेलन में, हम अपने समाज की आत्मा को फिर से जगाने आए हैं। हमारा आदिवासी समाज — संगठन, परंपरा और स्वाभिमान का प्रतीक रहा है। लेकिन बदलते समय में कई चुनौतियाँ खड़ी हुई हैं।


आज का सवाल है:

  • हम कैसे एकजुट होंगे?

  • कैसे नेतृत्व तैयार करेंगे?


पहला - हमें अपनी पारंपरिक व्यवस्था को फिर से मजबूत करना होगा — माझी, परगना, नाईके, गोडेत की भूमिका को बढ़ाना होगा।


दूसरा - युवा नेतृत्व को सामने लाना है। जो अपने हक को जाने, संविधान को समझे, और समाज के लिए बलिदान दे।


तीसरा - एकता ही असली शक्ति है। जब तक हम जाति, भाषा, गोत्र में बंटे रहेंगे, हमारा शोषण होता रहेगा।

जुड़ो, जागो और नेतृत्व करो!

इसमें निम्नलिखित बिंदुओं पर विमर्श किया:

  • आदिवासी एकता का महत्व

  • मजबूत नेतृत्व इकाई का निर्माण

  • एकता के लाभ और हानि

  • आदिवासी समुदाय का नेतृत्व और विकास

विशेष संबोधन:

1:30 बजे से 1:45 बजे तक सुकुलाल मारंडी जी ने ग्राम पंचायत, प्रखंड, जिला और राज्य स्तर पर आदिवासी एकता कैसे स्थापित की जा सकती है और हमारे अधिकारों के लिए संगठित संघर्ष कैसे किया जाए इससे संबंधी सभा को संबोधित किया।


भोजनावकाश:

1:45 बजे से 2:30 बजे तक भोजन का रहा।


विचार मंथन एवं वाद-विवाद:

2:30 बजे से 3:00 बजे तक विद्यार्थियों, माझी बाबा एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच सामाजिक विषयों पर वाद-विवाद सत्र आयोजित किया गया।

महत्वपूर्ण प्रस्तुति:

3:00 बजे से 5:30 बजे तक मानोताम कान्हू राम मार्डी जी 'आदिम माहली माहाल (पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था) की संरचना और सभी आदिवासी समुदायों के बीच एकजुटता सुदृढ़ करने की आवश्यकता पर प्रस्तुति दिए। इसके माध्यम से केंद्र स्तर पर संघर्ष और अधिकारों की रक्षा हेतु एक केंद्रीय समिति के निर्माण पर बल दिया। उन्होंने "आदिम माहली महाल: हमारी पहचान और संघर्ष" के बारे में सभी को अवगत करते हुए कहा —

मैं कान्हू राम मार्डी, आदिम माहली महाल का देश परगना,

आप सबको जोहार करता हूँ! हमारा आदिम माहली महाल केवल संगठन नहीं — यह हमारी पहचान, हमारी अस्मिता का प्रतीक है।


आदिम माहली महाल — हमारी सभ्यता का जिंदा प्रतीक है, हम सभी आदिवासियों को अपने - अपने गाँवो में

  • गाँव का स्वशासन,

  • आपसी मेलजोल,

  • बोंगा-बुरु की पूजा के साथ साथ

  • प्रकृति का सम्मान को बढ़ावा देना है।


लेकिन आज, हमारी आदिवासी पहचान बाजारवाद और आधुनिकता के हमले से खतरे में है।


आज समय की मांग है कि:

>अपने महाल की पारंपरिक प्रशासनिक व्यवस्था को फिर से मजबूत करें।

>हर गाँव में माझी, परगना, जोग माझी, गोडेत, नाईके, और डकूआ को संगठित करें।

>आदिम माहली महाल भवन बनवाएँ — जहाँ हमारी बैठकें, संस्कार, न्याय सब हो।


संघर्ष और संघटन ही दो रास्ते हैं:

अपनी जल, जंगल जमीन, संस्कृति को बचाने के लिए संघर्ष करें।


अपने समाज को शिक्षित, संगठित और सशक्त बनाकर आगे बढ़ाए।


याद रखो:

> "जो अपनी जड़ भूलता है, वह खोखला हो जाता है!"


इसलिए ज़रूरी है:

  • अपने महाल को फिर से संगठित करना,

  • अपने बोंगा बुरु की पूजा और सामाजिक रीति को जीवित रखना,

  • अपने बच्चों को गर्व से कहना: "हम आदिवासी हैं, और ये हमारी शान है!"


> "आदिवासियत नहीं बचेगी, तो हमारा अस्तित्व भी नहीं बचेगा!"


आदिवासी एकता को बनाए रखना हैं,

हम अपनी जड़ें नहीं भूलना हैं।

हमारा महाल फिर से मजबूती से खड़ा होगा !


इन्हीं शब्दों के साथ सभी को पुनः

जोहार!


संवाद सत्र:

5:30 बजे के बाद खुला संवाद सत्र रहा जिसमें सुकुमार सोरेन, शंकर सेन महाली, MASA राज्य अध्यक्ष, MASA सेना बामनघाटी अध्यक्ष, BKJ अध्यक्ष करिया हांसदा, तथा BKJ सदस्य शेखर महली ने भाग लिया।


💡द्वितीय दिवस (28 अप्रैल 2025, सोमवार)


प्रारंभिक गतिविधि:

8:30 बजे से 9:00 बजे तक प्रतिभागियों का स्वागत और उपस्थिति सुनिश्चित की जाएगी।


प्रतिभागियों का परिचय और अनुभव साझा सत्र:

9:00 बजे से 10:30 बजे तक विद्यार्थी और अन्य सदस्य अपने अनुभव साझा करेंगे।


सामाजिक चर्चा सत्र:

10:30 बजे से 11:30 बजे तक माझी, परगना और ग्रामीण प्रतिनिधि सामाजिक मुद्दों पर विचार साझा किया गया।


मुख्य संवैधानिक सत्र:

11:30 बजे से 1:30 बजे तक कृष्णा हांसदा जी संविधान के प्रावधानों, आदिवासी अधिनियमों एवं नीतियों के प्रभावी अनुपालन पर चर्चा किए। साथ ही यह भी बताया जाएगा कि कैसे हम अपने अधिकारों को कानूनी तरीके से सुरक्षित कर सकते हैं।

हांसदा ने "संविधान और आदिवासी अधिकार" के बारे ने अपने संबोधन में कहा: — आज हम यहाँ संविधान की रोशनी में अपने हक की बात करने आए हैं।

लेकिन क्या हम इन कानूनों का फायदा उठा पा रहे हैं?

क्या हमारा ग्रामसभा मजबूत है?

क्या हम अपने जंगल-जमीन की रक्षा कर पा रहे हैं?


भाइयों, जब तक हम संविधान को पढ़ेंगे नहीं, समझेंगे नहीं, लागू नहीं करेंगे — हमारे अधिकार सिर्फ कागजों में रह जाएंगे।


हमें जानना होगा:

  • कौन सा कानून हमें सुरक्षा देता है?

  • कहां पर हमें लड़ाई लड़नी है?

  • किस मंच पर अपनी बात रखनी है?

  • संविधान ने हमें विशेष सुरक्षा दी है:


"संविधान हमारा अस्त्र है, ग्रामसभा हमारी शक्ति है!"

कृष्णा जी का विस्तृत संबोधन नीचे दिए गए वीडियो में भी देख सकते हैं।



महत्वपूर्ण नियुक्तियाँ:

1:30 बजे से 1:45 बजे तक आवश्यकतानुसार प्रमुख व्यक्तियों का चयन किया जाएगा।


भोजनावकाश:

1:45 बजे से 2:30 बजे तक भोजन।


अतिरिक्त चयन सत्र:

2:30 बजे से 3:00 बजे तक।

महत्वपूर्ण सत्र:

3:00 बजे से 5:30 बजे तक

शंकर सेन महाली जी जो आदिम महली स़माज के जोग माझी एवं प्रमुख सामाजिक चिंतक के रूप में, संविधान और आदिवासी अधिकारों को लेकर बेहद जागरूक एवं प्रतिबद्ध हैं। उनके विचारों में संविधान को आदिवासी अस्तित्व और अधिकारों का सबसे बड़ा संरक्षणकर्ता माना जाता है। उनके प्रमुख संवैधानिक दृ्टिकोण, आदिवासी समुदाय में विधि, नियमों और अधिनियमों के कार्यान्वयन पर चर्चा किए। साथ ही आदिवासी समाज के आर्थिक विकास के तरीकों पर भी विस्तार से प्रकाश डालें। उन्होंने अपने संबोधन ( संथाली भाषा ) में दिया जिसका हिंदी रूपांतरण इस प्रकार हैं:

जोहार साथीगण,

सबसे पहले मैं आप सभी को आदरपूर्वक जोहार करता हूँ।

आज हम यहाँ "जिला स्तरीय आदिवासी सामाजिक एवं संवैधानिक जागरूकता कार्यक्रम" में एकजुट हुए हैं — यह केवल एक सम्मेलन नहीं, बल्कि हमारे अस्तित्व और अधिकारों की लड़ाई का शंखनाद है। हम मानते हैं कि भारतीय संविधान में आदिवासी समुदायों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं ताकि उनकी संस्कृति, जमीन, जल, जंगल और उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा हो सके। हम बार-बार डस बात पर जोर देते हैं कि अनुसूचित जनजातियों को मिला विशेष दर्जा केवल सहानुभूति नहीं, बल्कि हमारे ऐतिहासिक संघर्षों का सम्मान है।


संविधान: हमारा सबसे बड़ा ताक़त

साथियों, हमारे पूर्वजों ने हजारों वर्षों से जंगल, जल, जमीन की रक्षा की है। जब भारत स्वतंत्र हुआ, तब डॉ. भीमराव आंबेडकर जी के नेतृत्व में एक ऐसा संविधान बना जिसमें हमारे मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा जी का भी अहम भूमिका रहीं, इस संविधान में आदिवासी समाज की पहचान, अधिकार और गरिमा को सुरक्षित किया गया।


हमारे लिए विशेष कानून बने —

>पाँचवीं अनुसूची,

>छठी अनुसूची,

>पेसा अधिनियम,

>वनाधिकार कानून।


लेकिन प्रश्न यह है — क्या हम अपने इन अधिकारों को जानते हैं? क्या हम इनका सही उपयोग कर रहे हैं❓


याद रखिए —

जिसे अपने अधिकार की जानकारी नहीं, वह आजाद होकर भी गुलाम है।

  • जानकारी और जागरूकता ही शक्ति है


हम सबको जानना होगा:

>ग्राम सभा सर्वोच्च है।

>कोई भी कंपनी, कोई भी सरकार बिना ग्रामसभा की अनुमति के हमारी जमीन नहीं ले सकती।

>वनाधिकार कानून हमें जंगल पर अधिकार देता है।

>पेसा कानून हमारे परंपरागत तरीके से शासन करने का अधिकार देता है।


इसलिए, संविधान को किताबों में बंद मत रहने दो।

संविधान को जीवन में उतारो।


एकता में शक्ति है

साथियों, आदिवासी समाज की सबसे बड़ी कमजोरी है —

बिखराव।

कोई मुंडा, कोई संताल, कोई महली, कोई हो — जब तक हम छोटे-छोटे टुकड़ों में बंटे रहेंगे, हमारे अधिकार कोई भी छीनता रहेगा।


अगर हम एक हो जाएँ, तो कोई ताकत हमें कमजोर नहीं कर सकती।


गाँव स्तर पर, पंचायत स्तर पर, ब्लॉक स्तर पर, जिला और राज्य स्तर पर हमें अपनी एकता को मजबूत करना होगा।


हमारे संगठन, जैसे आदिम माहली महाल, आदिवासी महासभा — ये हमारी ढाल हैं। इन्हें और मजबूत करना है।


साथ ही साथ आर्थिक मजबूती भी जरूरी है

भाइयों और बहनों, केवल अधिकार की बात नहीं करनी है,

हमें आर्थिक रूप से भी मजबूत होना है:

>शिक्षा को हथियार बनाना है।

>स्वरोजगार को अपनाना है।

>सरकारी योजनाओं का सही लाभ उठाना है।

>जल, जंगल, जमीन के संसाधनों का मालिक खुद बनना है।


हमें तीन बातें पक्की करनी होंगी:

1. संविधान का ज्ञान - हक और कानून को समझे।

2. संगठन का निर्माण - ग्राम स्तर से लेकर जिला स्तर तक।

3.आर्थिक सशक्तिकरण - शिक्षा, स्वरोजगार, उद्यमिता को बढ़ावा दे।


यही असली आजादी है!


और अंत में,

मैं आप सबसे यही कहूँगा —

जागो, एकजुट हो, संविधान को समझो, और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करो। हमें हमारे पुरखों की विरासत को बचाना है और अगली पीढ़ी को गर्व से सौंपना है।


में आज इस मंच से आपको केवल भाषण नहीं, एक आंदोलन का संदेश देना चाहता हूँ। संविधान हमारे समाज के लिए ढाल है। लेकिन ढाल तभी काम आती है, जब उसे हाथ में उठाया जाए। आज का युग ज्ञान और अधिकार का युग है। इसलिए संविधान को पढ़े, समझे और अपने अधिकारों को लेना सीखे।


जोहार 🙏

एक बार फिर से सभी कोई जोर से बोलिए — जोहार!

समूह प्रस्तुतियाँ:

5:30 बजे से 6:00 बजे तक विभिन्न समूहों द्वारा हमारे पारंपरिक सामाजिक ढांचे पर आधारित प्रस्तुतियाँ दी गई।

सम्मान समारोह:

6:00 बजे से विद्यार्थियों, माझी बाबा, नायके, परगना, तथा उत्कृष्ट सामाजिक कार्यकर्ताओं का अभिनंदन एवं सम्मान समारोह आयोजित किया गया इसी के साथ ही दो दिवसीय कार्यक्रम का सफलतापूर्वक समापन किया गया।

जोहार 🙏

S S Mahali 🏹

_ऐसे ही_


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