झारखंड में असंवैधानिक TAC गठन,
आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों पर हमला।
झारखंड में Tribes Advisory Council (TAC) का गठन 21 फरवरी 2025 को किया गया, लेकिन यह पूरी तरह से संविधान के अनुच्छेद 244 (1) और 5वीं अनुसूची के उल्लंघन में हुआ है। राज्यपाल की शक्तियों को दरकिनार कर, मुख्यमंत्री के नेतृत्व में TAC का गठन कर दिया गया, जो न केवल असंवैधानिक है बल्कि झारखंड के आदिवासियों के अधिकारों को कमजोर करने का एक और प्रयास है।
TAC गठन: संवैधानिक व्यवस्था क्या कहती है?

आप भी देख के समझ सकते हैं, संविधान के अनुच्छेद 244 (1) के पैरा 4 के उप पेैरा 3 के अनुसार, Tribes Advisory Council (TAC) का गठन राज्यपाल की शक्ति में निहित है, न कि किसी कल्याण विभाग या मुख्यमंत्री के हाथों में।

संविधान की शर्तें:
1. TAC का गठन अनुच्छेद 244 (1) के तहत राज्यपाल द्वारा किया जाना चाहिए, लेकिन झारखंड में यह कल्याण विभाग द्वारा गठित किया गया।
2. TAC के अधिकतम सदस्य 20 होने चाहिए, जिनमें से ¾ (तीन-चौथाई) सदस्य यानी कि 15 अनुसूचित जनजाति के विधायकों में से होने चाहिए एवं शेष सीटें उन जनजातियों के अन्य सदस्यों द्वारा भरी जाएंगी।

3. दिनांक 21 फरवरी 2025 को झारखंड सरकार के कल्याण विभाग द्वारा जारी नोटिफिकेशन TAC में 17 विधायक शामिल किए हैं, जो कि संवैधानिक सीमा (15 विधायकों तक) से अधिक है जिसमें सदस्यों की कुल संख्या 19 हैं, जबकि अधिकतम संख्या 20 होने के लिए इसमें और 1 सदस्य को जोड़ा जा सकता है साथ ही संवैधानिक सीमा से अधिक होने के कारण वृद्धि हुए दो विधायक सदस्यों को हटाया जाना चाहिए।
4. अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों का प्रशासन और नियंत्रण के लिए TAC का उद्देश्य अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और उन्नति से संबंधित ऐसे मामलों पर सलाह देने के लिए होगा जो राज्यपाल द्वारा उन्हें भेजे जाएं।
झारखंड सरकार की साजिश आदिवासी अधिकारों पर कुठाराघात
झारखंड में आदिवासियों की संवैधानिक सुरक्षा को कमजोर करने की यह कोई पहली कोशिश नहीं है। हेमंत सोरेन सरकार ने लगातार संविधान को दरकिनार कर फैसले लिए हैं, पूर्व में काउंसिल के गठन की स्वीकृति के लिए राजभवन की मंजूरी आवश्यक थी। इस नई नियमावली में गठन का अधिकार मुख्यमंत्री को दिया गया है। जिससे आदिवासियों के संवैधानिक अधिकार खतरे में हैं।
TAC के असंवैधानिक गठन के पीछे छिपे उद्देश्य:
1. राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियों को कमजोर करना – संविधान स्पष्ट रूप से कहता है कि TAC का गठन राज्यपाल द्वारा किया जाना चाहिए, लेकिन सरकार इसे अपने नियंत्रण में रखना चाहती है।
2. राजनीतिक हस्तक्षेप – सरकार ने अधिक विधायकों को शामिल कर अपने राजनीतिक हित साधने की कोशिश की है, जिससे TAC अब आदिवासियों की आवाज नहीं, बल्कि सरकार की कठपुतली बन जाएगी।
3. अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन को प्रभावित करना – 5वीं अनुसूची में दिए गए अधिकारों को खत्म करने का प्रयास हो रहा है, ताकि बाहरी शक्तियां और कॉर्पोरेट समूह अनुसूचित क्षेत्रों के प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा कर सकें।
झारखंड के आदिवासियों को क्या करना चाहिए?
1. संवैधानिक लड़ाई: झारखंड के आदिवासियों को इस असंवैधानिक TAC के खिलाफ हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करनी चाहिए।
2. राज्यपाल से अपील: झारखंड के राज्यपाल को इस TAC को असंवैधानिक घोषित करते हुए अविलंब रद्द करने के लिए माँग करना चाहिए।
3. सामूहिक विरोध प्रदर्शन: झारखंड के आदिवासियों को एकजुट होकर TAC गठन की अवैध प्रक्रिया के खिलाफ आंदोलन खड़ा करना चाहिए।
4. संविधान की रक्षा: झारखंड में अनुच्छेद 244 (1) और 5वीं अनुसूची के प्रावधानों को अक्षरशः लागू करने की मांग करनी चाहिए।
TAC का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आदिवासियों के कल्याण और उन्नति, पारंपरिक अधिकारों की रक्षा हो और उनकी प्रशासनिक संरचना को मजबूत किया जाना हैं।
लेकिन झारखंड सरकार का यह कदम आदिवासी हितों और संविधान के खिलाफ सीधा हमला है। यह सिर्फ एक TAC गठन का मुद्दा नहीं है, बल्कि आदिवासियों की प्रशासनिक स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकारों को कमजोर करने की बड़ी साजिश का हिस्सा है। पूर्व में काउंसिल के गठन की स्वीकृति के लिए राजभवन की मंजूरी आवश्यक थी। नई नियमावली में गठन का अधिकार मुख्यमंत्री को दिया गया है। जो पूरी तरह से संविधान से असंगत हैं।
अगर अब भी आदिवासी समुदाय नहीं जागा, तो आने वाले समय में झारखंड पूरी तरह से बाहरी शक्तियों के नियंत्रण में चला जाएगा।
झारखंड बना कपिल शर्मा का मंच?
झारखंड में कोई भी आकर कुछ भी कर रहा है, और झारखंड के आदिवासी लोग केवल तमाशा देख रहे हैं। यह स्थिति आदिवासी समाज के लिए खतरनाक संकेत है। झारखंड का अस्तित्व आदिवासी संघर्षों का परिणाम है, लेकिन अब वही सरकार उनके संवैधानिक अधिकारों पर हमला कर रही है।
"अबुआ दिशुम, अबुआ राज!"
(हमारा देश, हमारा शासन) का नारा सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि संघर्ष की प्रेरणा है।
अब समय आ गया है कि झारखंड के आदिवासी अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष करें!
जोहार 🙏
S S Mahali 🏹
जोग माझी, झारखण्ड पोनोत
आदिम माहली माहाल
( पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था )
_ऐसे ही_
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