
PESA - 1996
The Provisions of the Panchayats (Extension to the Scheduled Areas) Act, 1996 (PESA Act) is a law that extends the provisions of Part IX of the Constitution of India to the Scheduled Areas.
पंचायत के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 ( पेसा अधिनियम ) एक कानून है जो भारत के संविधान के भाग IX के प्रावधानों को अनुसूचित क्षेत्रों विस्तारित करता है।
PESA / P - PESA / TPTPETSA / TPOTPETTSA - ACT 1996


The Provisions of the Panchayats (Extension to the Scheduled Areas) Act, 1996
Panchayat Raj (Extension to Scheduled Areas) Act of 1996
Panchayat (Extension to Scheduled Areas) Act of 1996
(PESA Act) Act of 1996
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It is a law enacted by the Parliament to extend the provisions of Part IX of the Constitution relating to the Panchayats to the 5th Scheduled Areas in a slightly modified form.
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यह पंचायतों से संबंधित संविधान के भाग IX के प्रावधानों को थोड़े संशोधित रूप में 5वीं अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तारित करने के लिए संसद द्वारा अधिनियमित एक कानून है।

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243m-यह भाग कुछ क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा
(1) इस भाग की कोई बात अनुच्छेद 244 के खंड (1) में निर्दिष्ट अनुसूचित क्षेत्रों और खंड (2) में निर्दिष्ट जनजाति क्षेत्रों को लागू नहीं होगी।
(2) इस भाग की कोई बात निम्नलिखित पर लागू नहीं होगी-
(क) नागालैंड, मेघालय और मिजोरम राज्य;
(ख) मणिपुर राज्य के वे पहाड़ी क्षेत्र जिनके लिए किसी तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन जिला परिषदें विद्यमान हैं।
(3) इस भाग की कोई बात-
(क) जिला स्तर पर पंचायतों से संबंधित, पश्चिम बंगाल राज्य के दार्जिलिंग जिले के पहाड़ी क्षेत्रों पर लागू होगा, जिसके लिए किसी समय प्रवृत्त कानून के अधीन दार्जिलिंग गोरखा हिल परिषद विद्यमान है;
(ख) ऐसे कानून के तहत गठित दार्जिलिंग गोरखा हिल परिषद के कार्यों और शक्तियों को प्रभावित करने के लिए लगाया जाएगा।
(3क) अनुसूचित जातियों के लिए स्थानों के आरक्षण से संबंधित अनुच्छेद 243घ की कोई बात अरुणाचल प्रदेश राज्य पर लागू नहीं होगी।
(4) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी,-
(क) खंड (2) के उपखंड (क) में निर्दिष्ट किसी राज्य का विधानमंडल, विधि द्वारा, इस भाग को खंड (1) में निर्दिष्ट क्षेत्रों को, यदि कोई हों, छोड़कर उस राज्य पर विस्तारित कर सकेगा, यदि उस राज्य की विधान सभा उस सदन की कुल सदस्यता के बहुमत द्वारा तथा उस सदन के उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा उस आशय का संकल्प पारित कर दे;
(ख) संसद, विधि द्वारा, इस भाग के उपबंधों को खंड (1) में निर्दिष्ट अनुसूचित क्षेत्रों और जनजाति क्षेत्रों पर ऐसे अपवादों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए विस्तारित कर सकेगी, जो ऐसी विधि में विनिर्दिष्ट किए जाएं और ऐसी कोई विधि अनुच्छेद 368 के प्रयोजनों के लिए इस संविधान का संशोधन नहीं समझी जाएगी।

What is PESA Act, 1996?
Read below to know more about PESA
The PESA Act, 1996 stands for the Provisions of the Panchayats (Extension to Scheduled Areas) Act, 1996. widely known as the PESA Act. Local self-governance, interpreted as the devolution of powers and functions of the government departments by the creation of Panchayat Raj institutions (PRIs) as a national framework of governance, commenced with the passage of the 73rd Amendment to the Constitution. The States made suitable amendments to existing Panchayat laws where they existed or enacted legislation in accordance with the 73rd Amendment where they did not exist. The devolution of the powers and responsibilities to the PRIs was neither uniform nor at the same pace, but progressed steadily. The Scheduled Areas were exempted from the application of the 73rd Amendment, for which the Parliament enacted a separate law, the Panchayat (Extension to the Scheduled Areas) Act, 1996 (PESA). PESA provisions were incorporated through amendments to the State Panchayat laws and amendments to the subject laws. A decade and a half of PESA in the 10 States with Scheduled Areas has been dismal and failed to usher in the expected far-reaching turn around in what was seen as governance deficit and misgovernance in the Scheduled Areas. PESA continued to be hailed as a fundamental departure to local self-governance that would usher in participatory democracy and genuine empowerment of the people. The reasons why PESA failed to deliver has been a result of lack of clarity, legal infirmity, bureaucratic apathy, lack of political will, resistance to change in power hierarchy, and non-realisation of its real long-term worth. Issues of basic nature are identified along with certain concrete propositions to address the gaps in the governance frame along with the available instruments that can be effectively used.
PESA
PESA,1996
THE PROVISIONS OF THE PANCHAYATS (EXTENSION TO THE
SCHEDULED Areas ACT, 1996 No.40 OF 1996
(24th December, 1996)
An Act to provide for the extension of the provisions of Part IX of the Constitution
relating to the Panchayats to the Scheduled Areas.
Be it enacted by Parliament in the Forty-seventh Year of the Republic of India as
follows:-
Short title
1. This Act may be called the Provisions of the Panchayats (Extension to the
Scheduled Areas) Act, 1996
Definition
2. In this Act, unless the context otherwise requires, “Scheduled Areas” means
the Scheduled
Areas as referred to in Clause (1) of Article 244 of the Constitution.
Extension of Part IX of The Constitution
3. The provision of Part IX of the Constitution relating to Panchayats are hereby
extended to the Scheduled Areas subject to such Exceptions and Modifications as are
provided in section 4.
Exceptions and modifications to part IX of The Constitution
4. Notwithstanding anything contained under Part IX of the Constitution, the
Legislature of a State shall not make any law under that Part which is inconsistent with
any of the following features, namely:-
(a) a State legislation on the Panchayats that may be made shall be in consonance with
the customary law, social and religious practices and traditional management practices of
community resources;
(b) a village shall ordinarily consist of a habitation or a group of habitations or a hamlet
or a group of hamlets comprising a community and managing its affairs in accordance
with traditions and customs;
(c) every village shall have a Gram Sabha consisting of persons whose names are
included in the electoral rolls for the Panchayat at the village level;
(d) every Gram Sabha shall be competent to safeguard and preserve the traditions and
customs of the people, their cultural identity, community resources and the customary
mode of dispute resolution;
(e) Every Gram Sabha shall..
.
.
.
o
5.
1771
तिलका मांझी (11 फ़रवरी 1750 - 13 जनवरी 1785) वर्तमान बिहार और झारखंड के एक उल्लेखनीय आदिवासी नेता और क्रांतिकारी थे, जिन्हें भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक उत्पीड़न के खिलाफ विद्रोह करने वाले शुरुआती लोगों में से एक माना जाता है। [ 1 ] [ 2 ] 1771 से लेकर 1785 में अपने कब्जे और फांसी तक विद्रोह का नेतृत्व करते हुए, उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी और उनके सहयोगी जमींदारों और रियासतों के शोषणकारी प्रथाओं के खिलाफ आदिवासी समुदायों को संगठित किया। [ 3 ] यह विद्रोह, जिसे अक्सर भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ पहला जन विद्रोह माना जाता है, ने बाद के आदिवासी विद्रोहों, जैसे 1855-1856 के संथाल हूल और अन्य स्थानीय प्रतिरोध आंदोलनों के लिए एक मिसाल कायम की। [ 4 ] उन्होंने जंगलों के विनाश और आदिवासी भूमि के अधिग्रहण के खिलाफ लड़ाई लड़ी ,
1776
चुआर विद्रोह :- भूमि राजस्व मांगों और आर्थिक संकट के खिलाफ मिदनापुर के आदिवासी जनजा तियों द्वारा संगठित।
1778
पहाड़िया विद्रोह :- इसका नेतृत्व राजा जगन्नाथ ने किया था, जिन्होंने राज महल पहाड़ियों के पहाड़िया लोगों का नेतृत्व उनकी भूमि पर ब्रिटिश विस्तार के ख िलाफ किया था।
1818
भील विद्रोह:- 1818-1831 में पश्चिमी घाट में कंपनी के शासन के खिलाफ भील राज का गठन किया गया।
1820
हो और मुंडा विद्रोह:- 1820– 1837 सिंहभूम और छोटानागपुर क्षेत्र में राजा परहाट के नेतृत्व में हो आदिवासियों द्वारा नई कृषि राजस्व नीति के खिलाफ़ विद्रोह किया गया। यह बाद में मुंडा विद्रोह बन गया।
1822
रामोसी विद्रोह:- 1822-29 पश्चिमी घाट के रामोसी आदिवासियों द्वारा, चित्तूर सिंह के नेतृत्व में, क्षेत्र पर ब्रिटिश कब्जे के खिलाफ़ एक महत्वपूर्ण आंदोलन था। यह विद्रोह मुख्य रूप से नई ब्रिटिश प्रशासन प्रणाली के कारण भड़का, जिसे रामोसियों ने अपने प्रति अन्यायपूर्ण माना। अंग्रेजों की विलय नीति और कठोर प्रशासनिक नीतियों से असंतुष्ट होकर वे चित्तूर सिंह के नेतृत्व में उठ खड़े हुए। उन्होंने सतारा और उसके आसपास के क्षेत्रों में ब्रिटिश चौकियों और प्रशासनिक केंद्रों पर हमले किए तथा कई स्थानों पर लूटपाट की। यह विद्रोह 1829 तक चला, जब अंग्रेजों ने इसे दबाकर क्षेत्र में पुनः व्यवस्था बहाल की। हालाँकि, विद्रोह को शांत करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने बाद में नरम रुख अपनाया और कुछ रामोसियों को पहाड़ी पुलिस में भर्ती कर लिया। यह विद्रोह ब्रिटिश शासन के प्रति आदिवासी असंतोष और उनके संघर्ष का प्रतीक था, जो यह दर्शाता है कि औपनिवेशिक नीतियों ने किस तरह जनजातीय समुदायों को विद्रोह के लिए मजबूर किया।
1829
कोली विद्रोह:- गुजरात और महाराष्ट्र के आदिवासियों ने कंपनी के नियंत्रण के विरुद्ध 1829, 1839 और फिर 1844-48 में विद्रोह किया।
1832
1832 में, कुछ क्षेत्रों को 'संथाल परगना' या 'दामिन-ए-कोह' के रूप में नामित किया गया था, जिसमें वर्तमान झारखंड में वर्तमान साहिबगंज, गोड्डा, दुमका, देवघर, पाकुड़ और जामताड़ा के कुछ हिस्से शामिल हैं। यह क्षेत्र संथालों को दिया गया था जो बंगाल प्रेसीडेंसी के अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े हुए थे।
संथालों को दामिन-ए-कोह में बसने और कृषि करने का वादा किया गया था, लेकिन इसके बदले में उन्हें दमनकारी भूमि हथियाने और बेगारी (बन्धुए माफिया) का सामना करना पड़ा।
संथाल क्षेत्र में बंधुआ मटियारी की दो प्रणालियाँ उभरीं, जिनमें कामियोटी और हरवागी के नाम से जाना जाता है। कामियोटी के तहत, ऋण चुकाने तक ऋणदाता के लिए काम करना था, जबकि हरवाघ के तहत, ऋणदाता को व्यक्तिगत सेवाएं प्रदान की जाती थीं और ऋणदाता के खेत की जुताई करनी पड़ती थी। बैंड की सख्ती से पता चला कि संथाल के लिए अपने छात्र पर कर्ज लगभग असंभव था।
1837
विद्रोह स्वरूप 'कर वसूली' और अंग्रेजों के मनमानी के विरोध में सन् 1831-1832 में सिंदराय व विंदराय मानकी के नेतृत्व में कोल-विद्रोह हुआ। इस विद्रोह के केंद्रबिंदु में दिकुओं (हिन्दू, सिख और मुस्लमान) को रखकर जमींदारों, महाजनों और सूदखोरों के उप्पर आक्रमण कर उनको मौत के घाट उतरा गया, साथ ही उनके सम्पतियों को नुकसान पहुँचाया गया। इसके अलावा सरकारी खजाने को लुटा गया और अंग्रेज़ों द्वारा स्थापित कचहरी और थाना पर भी आक्रमण किया गया। अंत में कंपनी ने स्तिथि की गंभीरता को देखते हुए सेना की एक विशाल टुकड़ी भेजी और बड़ी निर्दयता से इस विद्रोह को दबा दिया।
कोल विद्रोह के परिणामस्वरूप सन् 1833 में बंगाल रेगुलेशन एक्ट XIII को गवर्नर जेनरल के एजेंट कैप्टेन थॉमस विल्किंसन ने लोक न्याय हेतु आदिवासियों के पारम्परिक स्वशासन व्यवस्था को समझने के उपरांत उसे कॉउंसिल में पारित करवाया। और इस नये क्षेत्र को ‘कोल्हान गवर्मेन्ट एस्टेट’ नाम प्रदान किया। इसी के तहत सन् 1837 में विल्किंसन रूल आया। इस कानून का मुख्य उद्देश्य, इस क्षेत्र में सदियों से चले आ रहे पारम्परिक व्यवस्था के माध्यम से अच्छा प्रशासन देना और शीघ्र ही सामान्य और सस्ता न्याय दिलाना था। मुख्य तौर पर यहाँ के आदिवासियों की जमीनों को गैर-आदिवासियों अर्थात दिकुओं के हाथों में जाने देने से बचाना था। चूँकि, अंग्रेज़ बखूबी तौर से आदिवासियों के जमीन के प्रति लगाव को समझ गए थे कि, आदिवासियों को विद्रोह से रोकने के लिए आदिवसियों का जमीनों पर मालिकाना हक़ बने रहना जरुरी था।
विल्किंसन रूल में कोल्हान में प्रचलित दण्ड प्रणाली और परम्पराओं तथा नये कर प्रणाली को लेखबद्ध किया गया। जिस मामले को मुण्डा नहीं सुलझा पाते थे, उस मामले का निपटारा मानकी को करना था। मानकी को अपने अधीनस्थ मुण्डा लोगों पर निगरानी करना था। कैप्टेन थॉमस विल्किंसन ने इसमें कुल 31 प्रावधान शामिल कर इसे तत्कालीन बंगाल के गवर्नर से अनुमोदित करा कर, इसे तत्काल कोल्हान में लागू करा दिया। विल्किंसन रूल में छोटे आपराधिक मामले शामिल किये गए थे, हत्या और डकैती को इससे अलग रखा गया था। अंततः इस कानून के माध्यम से अंग्रेज़ों ने कर वसूलना सुनिश्चित किया।
स्वप्रथम वर्तमान के चाईबासा के असुरा ग्राम के मानकी के साथ ब्रिटिश हुकूमत का इकरार हुआ। तब से ब्रिटिश हुकूमत ने स्थानीय व्यक्तियों को प्रशासन में भागीदार बनाया और इकरारनामे के आधार पर कोल्हान क्षेत्र के प्रशासन के लिए, ‘मानकी’ तथा ‘मुण्डा’ को अलग-अलग सनद पट्टा निर्गत किया। जिसे अब हुकूकनामा के नाम से जाना जाता है। मुण्डा एक गांव का मुख्य होता है और मानकी एक पीड़ का प्रधान होता है, आमतौर पर एक पीड़ में 12 से 13 गांव होते हैं। मानकी और मुण्डा का ओहदा वंशानुगत होता है। लेकिन, यदि नियमता मानकी या मुण्डा को ग्राम सभा से बर्खास्त किया जाये तो उनके वारिसों को उक्त पदों पर कोई हक नहीं होता है।
1855
संथाल हुल जो ब्रिटिश औपनिवेशिक उत्पीड़न के खिलाफ एक महत्वपूर्ण है, इस विद्रोह के परिणामस्वरूप 1876 में संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम और 1908 में छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम पारित हुआ, जो भारत में जनजातीय भूमि अधिकारों और सांस्कृतिक स्वायत्तता के संरक्षण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था। 1855 का संथाल हुल भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ सबसे शुरुआती किसान विद्रोहों में से एक था। चार भाइयों - सिद्धो, कान्हो, चांद और भैरव मुर्मू - के साथ-साथ बहनों फूलो और झानो के नेतृत्व में, विद्रोह 30 जून 1855 को शुरू हुआ ।
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इस विद्रोह का लक्ष्य न केवल अंग्रेज थे, बल्कि उच्च जातियां, जमींदार, दरोगा और साहूकार भी थे, जिन्हें सामूहिक रूप से 'दिकू' कहा जाता था।
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इसका उद्देश्य संथाल समुदाय के आर्थिक, सांस्कृतिक और धार्मिक अधिकारों की रक्षा करना था।
1867
भुयान और जुआंग विद्रोह:- उड़ीसा के क्योंझर की जनजातियों ने 1867 और 1891 में दो बार विद्रोह किया।
1868
नाइकाडा आंदोलन:- मध्य प्रदेश और गुजरात के आदिवासियों ने धर्म राज की स्थापना के लिए अंग्रेजों और सवर्ण हिंदुओं के खिलाफ आंदोलन किया।
1870
खरवार विद्रोह:- बिहार के आदिवासियों ने राजस्व बंदोबस्त गतिविधियों के खिलाफ भागृत मांझी के नेतृत्व में प्रदर्शन किया।
1872
संताल परगना बंदोबस्त विनियमन 1872 ( 1872 का विनियमन III )
1874
अनुसूचित ज़िला अधिनियम, 1874 स्थानीय सरकारों को अनुसूचित ज़िलों में कानून लागू करने का अधिकार देता था. यह अधिनियम मुख्य रूप से ब्रिटिश भारत में लागू था. ब्रिटिश भारत के विभिन्न भागों में प्रवृत्त अधिनियमों का पता लगाने तथा अन्य प्रयोजनों के लिए अधिनियम।
1879
कोया विद्रोह:- 1879-80 पूर्वी गोदावरी क्षेत्र के आदिवासियों ने तोम्मा सोरा और राजा अन्नानट्यार के नेतृत्व में पुलिस और साहूकारों के खिलाफ विद्रोह किया।
1876
संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम, 1876
1899
मुंडा विद्रोह:- 1899 - 1900 जिसे "उलगुलान" या "महा-उत्पात" "महान हंगामा" के नाम से भी जाना जाता है, ब्रिटिश शासन और बाहरी जमींदारों के खिलाफ आदिवासियों द्वारा किए गए सबसे प्रसिद्ध विद्रोहों में से एक था। मुंडा जनजाति मुख्य रूप से छोटानागपुर क्षेत्र में निवास करती थी, जहाँ उनकी पारंपरिक खूंटकट्टी प्रणाली प्रचलित थी, जिसमें भूमि का संयुक्त स्वामित्व था। हालाँकि, ब्रिटिश शासन और बाहरी जमींदारों के आगमन से इस व्यवस्था का विनाश हो गया और जमींदारी प्रणाली लागू कर दी गई, जिससे आदिवासियों को ऋणग्रस्तता और जबरन मजदूरी जैसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। 1789 से 1832 के बीच मुंडाओं ने साहूकारों और ब्रिटिश सरकार द्वारा किए गए उत्पीड़न के खिलाफ़ कई बार विद्रोह किया, जिसे "सरदारिलदाई" या "नेताओं का युद्ध" भी कहा गया। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य बाहरी लोगों, जिन्हें "दिकू" कहा जाता था, को बाहर निकालना था। 1857 के विद्रोह के बाद कई मुंडाओं ने ईसाई मिशनरियों के साथ जुड़ने की कोशिश की, लेकिन जब उन्हें अहसास हुआ कि यह उनके लिए लाभदायक नहीं है, तो वे उनके भी विरोधी हो गए। लंबे समय तक करिश्माई नेतृत्व के अभाव में यह आंदोलन कमजोर पड़ता रहा, लेकिन 1894 में बिरसा मुंडा के नेतृत्व में इसे नया जीवन मिला। बिरसा मुंडा ने अपने लोगों को संगठित कर ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह करने का आह्वान किया और कर व ऋण चुकाने से इनकार करने की अपील की। 1895 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और दो साल की जेल के बाद 1897 में रिहा कर दिया गया। दिसंबर 1899 में उन्होंने ब्रिटिश सरकार और जमींदारों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष की शुरुआत की, जिसमें पुलिस थानों, चर्चों, जमींदारों की संपत्तियों और ब्रिटिश प्रतिष्ठानों को आग के हवाले कर दिया गया। लेकिन 1900 में उन्हें पकड़ लिया गया और जेल में महज 25 वर्ष की आयु में हैजा से 9 June 1900 में उनकी मृत्यु हो गई। उनका बलिदान आज भी आदिवासी स्वाभिमान और स्वतंत्रता के संघर्ष का प्रतीक बना हुआ है।
1908
CNT अधिनियम, या छोटा नागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908, भारत में ब्रिटिश सरकार द्वारा छोटा नागपुर क्षेत्र (अब मुख्य रूप से झारखंड में) में आदिवासी समुदायों के भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासियों को हस्तांतरित करने पर प्रतिबंध लगाकर लागू किया गया था, जो मूल रूप से बिरसा मुंडा विद्रोह से उत्पन्न चिंताओं से उपजा था, जिसमें आदिवासी भूमि स्वामित्व के शोषण पर प्रकाश डाला गया था; इसका उद्देश्य जनजातीय भूमि के और अधिक हस्तांतरण को रोकना तथा उनकी भूमि पर उनके पारंपरिक अधिकारों की रक्षा करना था।
1910
बस्तर विद्रोह:- जगदलपुर के आदिवासियों द्वारा नए सामंती और वन करों के खिलाफ।
1932
1932 में केडेस्ट्रल सर्वे हुआ था।
1935
GOVERNMENT OF INDIA ACT, 1935
EXCLUDED AREAS AND PARTIALLY EXCLUDED AREAS
(1)इस अधिनियम में "बहिष्कृत क्षेत्र" और "आंशिक रूप से बहिष्कृत क्षेत्र" का अर्थ क्रमशः ऐसे क्षेत्र हैं जिन्हें महामहिम परिषद द्वारा आदेश द्वारा बहिष्कृत क्षेत्र या आंशिक रूप से बहिष्कृत क्षेत्र घोषित कर सकते हैं। राज्य सचिव इस अधिनियम के पारित होने से छह महीने के भीतर संसद के समक्ष उस आदेश का मसौदा प्रस्तुत करेंगे जिसे महामहिम द्वारा इस उपधारा के तहत बनाने की सिफारिश की जानी प्रस्तावित है।
(2)महामहिम किसी भी समय परिषद् के आदेश द्वारा-
(ए)निर्देश दे सकेंगे कि बहिष्कृत क्षेत्र का सम्पूर्ण भाग या उसका कोई निर्दिष्ट भाग आंशिक रूप से बहिष्कृत क्षेत्र बन जाएगा या उसका भाग बन जाएगा;
(बी)निर्देश दे सके कि आंशिक रूप से बहिष्कृत क्षेत्र का संपूर्ण या उसका कोई निर्दिष्ट भाग आंशिक रूप से बहिष्कृत क्षेत्र या ऐसे क्षेत्र का भाग नहीं रह जाएगा;
(सी)किसी बहिष्कृत या आंशिक रूप से बहिष्कृत क्षेत्र को परिवर्तित करना, परंतु केवल सीमाओं के सुधार के माध्यम से;
(डी)किसी प्रान्त की सीमाओं में किसी परिवर्तन या किसी नये प्रान्त के निर्माण पर, किसी ऐसे क्षेत्र को, जो पहले किसी प्रान्त में सम्मिलित नहीं था, बहिष्कृत क्षेत्र या आंशिक रूप से बहिष्कृत क्षेत्र होने या उसका भाग बनने की घोषणा कर सकेगा और ऐसे आदेश में ऐसे आनुषंगिक और पारिणामिक उपबन्ध हो सकेंगे जो महामहिम को आवश्यक और उचित प्रतीत हों, किन्तु पूर्वोक्त के सिवाय 'इस धारा की उपधारा (1) के अधीन बनाया गया परिषद् आदेश किसी पश्चातवर्ती आदेश द्वारा परिवर्तित नहीं किया जाएगा।
(1)किसी प्रांत की कार्यपालिका शक्ति उसके बहिष्कृत तथा आंशिक रूप से बहिष्कृत क्षेत्रों तक फैली हुई है, किन्तु इस अधिनियम में किसी बात के होते हुए भी, संघीय विधानमंडल या प्रांतीय विधानमंडल का कोई अधिनियम किसी बहिष्कृत क्षेत्र या आंशिक रूप से बहिष्कृत क्षेत्र पर लागू नहीं होगा, जब तक कि राज्यपाल सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा ऐसा निदेश न दे, और राज्यपाल किसी अधिनियम के संबंध में ऐसा निदेश देते समय यह निदेश दे सकेगा कि वह अधिनियम उस क्षेत्र या उसके किसी विनिर्दिष्ट भाग पर लागू होने में ऐसे अपवादों या संशोधनों के अधीन प्रभावी होगा, जिन्हें वह ठीक समझे।
(2)राज्यपाल किसी प्रांत में किसी ऐसे क्षेत्र की शांति और सुशासन के लिए विनियम बना सकता है जो फिलहाल बहिष्कृत क्षेत्र है या आंशिक रूप से बहिष्कृत क्षेत्र है और इस प्रकार बनाए गए कोई भी विनियम संघीय विधानमंडल या प्रांतीय विधानमंडल के किसी अधिनियम या किसी मौजूदा भारतीय कानून को निरस्त या संशोधित कर सकते हैं, जो फिलहाल संबंधित क्षेत्र पर लागू है।इस उपधारा के अधीन बनाए गए विनियम तत्काल गवर्नर-जनरल के समक्ष प्रस्तुत किए जाएंगे और जब तक वह अपने विवेक से उन पर अनुमति नहीं दे देता, तब तक उनका कोई प्रभाव नहीं होगा और अधिनियमों को अस्वीकृत करने की महामहिम की शक्ति के संबंध में इस अधिनियम के इस भाग के उपबंध गवर्नर-जनरल द्वारा स्वीकृत ऐसे किसी विनियम के संबंध में उसी प्रकार लागू होंगे, जिस प्रकार वे उसके द्वारा स्वीकृत किसी प्रांतीय विधानमंडल के अधिनियमों के संबंध में लागू होते हैं।
(3)राज्यपाल, प्रांत के किसी ऐसे क्षेत्र के संबंध में, जो फिलहाल अपवर्जित क्षेत्र है, अपने विवेकानुसार अपने कार्यों का प्रयोग करेगा।
1946
9 दिसम्बर, 1946 - भारतीय संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को हुई थी । इसका गठन कैबिनेट मिशन (1946) योजना के तहत हुआ था और इसके लिए जुलाई 1946 में चुनाव हुए थे । जब 9 दिसम्बर, 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक हुई, मुस्लिम लीग ने बैठक का बहिष्कार किया और अलग पाकिस्तान की मांग पर बल दिया । इस पहली बैठक में केवल 211 सदस्यों ने हिस्सा लिया । इस सभा के सबसे वरिष्ठ सदस्य डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को सभा का अस्थायी अध्यक्ष चुना गया । बाद में डॉ. राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष निर्वाचित हुए । डॉ. एच.सी. मुखर्जी तथा टी. टी. कृष्णामचारी सभा के उपाध्यक्ष निर्वाचित हुए ।
1947
The Indian Independence Act 1947 (10 & 11 Geo. 6. c. 30) is an act of the Parliament of the United Kingdom that partitioned British India into the two new independent dominions of India and Pakistan. The Act received Royal Assent on 18 July 1947 and thus modern-day India and Pakistan, comprising west (modern day Pakistan) and east (modern day Bangladesh) regions, came into being on 15 August.[1][a]
The legislature representatives of the Indian National Congress,[2] the Muslim League,[3] and the Sikh community[4] came to an agreement with Lord Mountbatten, then Viceroy and Governor-General of India, on what has come to be known as the 3 June Plan or Mountbatten Plan.
1948
30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को बेहद करीब से गोली मारी थी। यह घटना दिल्ली के बिरला हाउस में शाम की प्रार्थना सभा के दौरान हुई। गोडसे ने महात्मा गांधी पर तीन गोलियां च लाईं। एक गोली सीने में, दूसरी और तीसरी पेट में लगी।
1949
26 नवंबर 1949 को भारत की संविधान सभा ने भारत के संविधान को अपनाया । संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।
1950
26 जनवरी 1950 को इसके संविधान को आत्मसात किया गया, जिसके अनुसार भारत देश एक लोकतांत्रिक, संप्रभु तथा गणतंत्र देश घोषित किया गया। 26 जनवरी 1950 को देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने 21 तोपों की स लामी के साथ ध्वजारोहण कर भारत को पूर्ण गणतंत्र घोषित किया।
1951
THE REPRESENTATION OF THE PEOPLE ACT, 1950
1952
25 October 1951 and 21 February 1952
1989
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (पीओए अधिनियम) अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के विरुद्ध अपराधों को रोकने के लिए भारतीय संसद द्वारा पारित किया गया था। इसमें इन अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों तथा पीड़ितों के पुनर्वास का भी प्रावधान है।
1992
73वें संविधान संशोधन अधिनियम 1992 ने भारत में स्थानीय स्वशासन की प्रणाली स्थापित की । इसने पंचायतों को संवैधानिक दर्जा दिया तथा राज्यों के लिए पंचायती राज अधिनियम बनाना अनिवार्य कर दिया।
1993
74वें संविधान संशोधन अधिनियम 1992 ने भारत के शहरी क्षेत्रों में स्थानीय शासन के लिए एक ढांचा स्थापित किया । इसने नगर पालिकाओं को संवैधानिक दर्जा भी दिया। यह संशोधन 1 जून 1993 को प्रभावी हुआ।
1996
पंचायत प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा अधिनियम) भारतीय संसद द्वारा 24 दिसंबर, 1996 को पारित किया गया था। यह अधिनियम भारत के अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायती राज व्यवस्था स्थापित करने के लिए बनाया गया था ।
2000
15 नवंबर झारखंड स्थापना दिवस है , जो 2000 में उस दिन का प्रतीक है जब झारखंड भारत का एक राज्य बना था। यह प्रतिवर्ष 15 नवम्बर को मनाया जाता है।
2001
झारखंड पंचायत राज अधिनियम (जेपीआरए) 2001 में संशोधन किया गया ताकि ग्राम पंचायतों, पंचायत समितियों और जिला परिषदों को अधिक प्रशासनिक कार्य और प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन का अधिकार दिया जा सक े। इस संशोधन से परामर्श और सिफारिश की शक्तियां भी कम हो गईं।
2010
अधीसूचना दिनांक-14/10/2010,
लगभग 32 वर्षों के बाद आख़िरकार झारखंड में पंचायत चुनाव की घोषणा कर दी गई है.
राज्य निर्वाचन आयोग नें गुरुवार को इस आशय की अधिसूचना जारी कर दी है. इस इलाक़े में पिछली बार पंचायत के चुनाव अविभाजित बिहार में वर्ष 1979 में संपन्न हुए थे. ये चुनाव 27 नवंबर से 20 दिसंबर तक पांच चरणों में कराए जाएंगे.
दूसरे चरण का मतदान 12 दिसंबर को होगा जबकि तीसरे चरण का मतदान 13 दिसंबर को और चौथे चरण का मतदान 20 दिसंबर को होगा. अधिसूचना के बाद अब 24 जिलों के 259 प्रखंडों के 1,43,61,623 मतदाता 53207 पदों के लिए उम्मीदवार चुनेंगे.
इन पदों में 43916 वार्ड समिति के पद, 4423 मुखिया, 4423 ग्राम पंचायत समिति और 445 जिला समिति के पद शामिल हैं.
इन चुनावों में 50 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की गईं हैं. चूंकि झारखण्ड संविधान की पांचवी अनुसूची का राज्य है, राज्य के मुख्य निर्वाचन आयुक्त एसडी शर्मा का कहना है कि पंचायत के चुनाव 'पंचायत राज एक्सटेंशन टू शेड्यूल्ड एरिया एक्ट' यानि 'पेसा'के प्रावधानों के तहत कराए जाएंगे.
इन प्रावधानों के अनुसार पंचों के पदों में से प्रमुख के पद अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित किए जाने हैं. इस मुद्दे को लेकर झारखंड में काफ़ी विरोध भी हुआ था और मामला उच्चतम न्यायालय पहुँच गया था. उच्चतम न्यायालय नें 'पेसा' के तहत ही चुनाव करने का निर्देश दिया है.
मुख्य निर्वाचन आयुक्त का कहना है कि राज्य सरकार नें ऐसे 52 वार्डों को अनुसूची से हटा दिया है जहाँ एक भी अनुसूचित जनजाति के सदस्य नहीं रहते हैं. झारखंड के 24 में से 24 जिले नक्सल प्रभावित हैं इसलिए हिंसा मुक्त पंचायत चुनाव कराना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती साबित होगा.
2015
08 अक्टूबर 2015 झारखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव चार चरणों में होगी. इसकी घोषणा गुरुवार को राज्य निर्वाचन आयोग आयुक्त शिव बसंत ने की. उन्होंने बताया कि पहले चरण का चुनाव 22 नवंबर को होगा. जबकि दूसरे चरण का 28 नवंबर, तीसरा चरण 05 दिसंबर और चौथा चरण का मतदान 12 दिसंबर को होगा. चुनाव आयोग ने इसके लिए पूरी तैयारी कर ली है. इस चुनाव में कुल 24 जिलों के 263 प्रखंडों में चुनाव होने हैं. जिसमें ग्राम पंचायत की संख्या ग्राम पंचायत के मुखिया की संख्या 4402 है. वहीं, पंचायत समिति के क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्र की संख्या 5423 है और जिला परिषद् के क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या 5423 है और जिला परिषद् के क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या 545 है.
2022
09 Apr 2022 राज्य में पंचायत चुनाव का बिगुल बज चुका है। शनिवार को राज्यपाल रमेश बैस की स्वीकृति के बाद जहां पंचायती राज विभाग ने पंचायत चुनाव की अधिसूचना जारी कर दी, वहीं राज्य निर्वाचन आयोग ने भी इसकी घोषणा कर दी। इस घोषणा के साथ ही पूरे राज्य के पंचायत क्षेत्रों में आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है। यह नगर निकाय क्षेत्र तथा कंटेनमेंट क्षेत्रों में लागू नहीं होगी। राज्य निर्वाचन आयुक्त डीके तिवारी के अनुसार, राज्य में पंचायत चुनाव चार चरणों में संपन्न होगा। इसमें पहले चरण का मतदान 14 मई, दूसरे चरण का मतदान 19 मई, तीसरे चरण का मतदान 24 मई तथा चौथे व अंतिम चरण का मतदान 27 मई को होगा। दलीय चुनाव नहीं होने के कारण दो चरणों के मतदान के बाद ही चरणवार मतगणना शुरू हो जाएगी। इस दौरान पहले और दूसरे चरण के मतों की गिनती की जाएगी। इसी तरह, तीसरे व चौथे चरण के मतों की गणना एक साथ होगी।
2023
26 जुलाई 2023 को पेसा नियामवाली का पब्लिक नोटिफिकेशन जारी की गईं , दो दशकों का इंतजार आखिर 26 जुलाई को खत्म हो गया जब झारखंड के पंचायती राज विभाग ने राज्य के लिए पेसा नियम को गजट नोटिफिकेशन निकालकर सार्वजनिक किया और आम लोगों से इस पर राय मांगी.
झारखंड हमेशा से ही अपनी खनिज संपदा के लिए जाना जाता रहा है. छोटा नागपुर की पहाड़ियां आकाश से जितनी शांत नजर आती हैं, अंदर से ये उतनी ही उथल-पुथल भरी हैं. राज्य को अस्तित्व में आए दो दशक से ज्यादा हो चुके हैं और तब से सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक तौर पर झारखंड अशांत ही रहा है.
अनुसूचित क्षेत्रों के लिए पेसा कानून को बने 25 साल से ज्यादा हो चुके हैं. इस कानून के तहत 10 राज्यों को पेसा नियम बनाना था लेकिन अभी भी झारखण्ड और ओडिशा दो ऐसे राज्य हैं जहां पेसा नियम नहीं बना है. मध्य प्रदेश में 2022 में जनजातीय गौरव दिवस के दिन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नियमावली का विमोचन किया था.
2024
लेकिन झारखण्ड में पेसा नियमों की बात अभी क्यों?
ड्राफ्ट में ग्राम सभा को पारिवारिक मामलों, आईपीसी के तहत आने वाले कुछ मसलों, कानून-व्यवस्था से जुड़े मामलों की सुनवाई का अधिकार दिया गया है. साथ ही ड्राफ्ट में मुख्य तौर पर सामुदायिक संसाधनों के प्रबंधन, परंपराओं का संरक्षण और विवादों के निपटारे, विकास योजनाओं, भू-अर्जन और पुनर्स्थापन, लघु जल निकायों का प्रबंधन, लघु खनिज, मादक द्रव्यों का नियंत्रण, लघु वन उपज, बाजारों का प्रबंधन से जुड़े अधिकारों को विस्तार से बताया गया है.ग्रामीण इलाकों में सेल्फ गवर्नेंस को बढ़ावा देने के लिए 1992 में 73वां संविधान संशोधन लाया गया था. इस संशोधन के जरिए त्रि-स्तरीय पंचायती राज संस्था को कानूनी रूप मिला, लेकिन शिड्यूल और ट्राइबल इलाकों के लिए इसमें कोई प्रावधान नहीं था. इसके लिए 1995 में भूरिया कमेटी ने सिफारिशें दी और 1996 में पेसा कानून आया जो शेड्यूल्ड एरिया को सेल्फ गवर्नेंस की शक्तियां देता है.
दो दशकों का इंतजार आखिर 26 जुलाई यानि की बुधवार को खत्म हो गया जब झारखंड के पंचायती राज विभाग ने राज्य के लिए पेसा नियम को गजट नोटिफिकेशन निकालकर सार्वजनिक किया और आम लोगों से इस पर राय मांगी.
मौजूदा ड्राफ्ट में पंचायतों के संचालन के बारे में विस्तार से नियम बताए गए हैं और इस नियमावली का नाम "झारखंड पंचायत उपबंध अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार नियमावली 2024" रखा गया है. झारखंड के 24 में से 13 जिले पांचवी अनुसूची के अंतर्गत आते हैं और पेसा कानून अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों को खुद के तौर-तरीकों से शासन व्यवस्था का अधिकार देता है जिसे संविधान भी मान्यता देता है.
पांचवीं और छठी अनुसूची में शामिल राज्यों को 1997 से पहले पेसा कानून के नियम बनाने थे लेकिन झारखंड और छत्तीसगढ़ का गठन साल 2000 में हुआ. हालांकि आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात में पेसा नियम बने हुए हैं और तेलंगाना आंध्र प्रदेश के ही नियमों का पालन कर रहा है.
पेसा नियम लंबे समय से झारखंड में राजनीति का भी मुद्दा बना रहा है और आदिवासी भी कई बार नियमों की मांग को लेकर सड़क पर उतर चुके हैं. मार्च 2023 में हेमंत सोरेन सरकार ने झारखंड विधानसभा में कहा था कि पेसा कानून को लेकर नियमावली जल्द ही जारी की जाएगी. वहीं, भाजपा लगातार सोरेन सरकार को इस मुद्दे पर घेरती रही है.
2011 की जनगणना के अनुसार देश में कुल 8.6 प्रतिशत आदिवासी आबादी है और 700 से ज्यादा जनजातीय समूह है. झारखंड में कुल 32 जनजातियां है जिसमें संथाल, उरांव, मुंडा, महली, हो, खरवार, लोहरा, भूमिज, खड़िया, पहाड़िया, बेदिया आदि प्रमुख हैं.
2025
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PESA नियमावली 2024 अब तक भी लागु नहीं हुवा है,
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TAC का गठन 21 फ़रवरी 2025 को संविधान से असंगत और असंवेधानिक तरीके से किया गया है। POST देखे






हमारी परंपरा, हमारी विरासत 🌿🏹
“संस्कृति किसी समाज की आत्मा होती है, और परंपराएं उस आत्मा की जीवंत अभिव्यक्ति।”
👉 हमारी परंपरा, हमारी विरासत एक महत्वपूर्ण पहल है, जिसका उद्देश्य झारखंड की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करना और आदिवासी समुदायों की पारंपरिक ज्ञान, कला, रीति-रिवाजों एवं सामाजिक संरचना को मजबूत करना है। यह कार्यक्रम पंचायती राज मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा झारखंड में 26 जनवरी 2025 से शुरू किया गया है।